Sunday 12 July 2015

जनहित मे जारी - 7

जनहित मे जारी - 7

      1980 प्रदर्शित फिल्म  "नाम" , महेश भट्ट द्वारा निर्देशित एक सुपरहिट फिल्म थी, स्क्रीन प्ले लिखा था  सलमान खान के पिता सलीम खानजीने , सलीम -जावेद जोडीने 27 सुपर हिट फिल्मे दी , अलग होने बाद सलीम खान द्वारा लिखी हुई  "नाम"  पहली फिल्म थी , कहानी कुछ इस प्रकार की थी , एक मां के दो बेटे , एक बेटा दुबई जाता है पैसे कमाने ने के लिये, वहा न चाहते हुए भी   ड्रग्ज के कारोबार   मे उलझ जाता है  और मारा जाता है ,  पिछे छोड जाता है बुढी मां, भाई और गर्भवती पत्नी !

     जिस गाने का जिक्र होगा उसे बिसवी सदी के  बेस्ट १०० सॉंग्ज की श्रेणी मे बी.बी.से. ने सामील किया है , संगीत दिया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने और गीत को लिखा  है आनंद बक्षीजीने !सच पूछिये तो  ये  गझल है , जिसे गाया है पंकज उधास ने ! गाने की सिच्युएशन ऐसी है के, फिल्म के नायक और नायिका अपने घरसे दूर दुबई मे है और दिल बेहलाने के लिये गाने की महफिल मे जाते है ! और वहा गायक पंकज उधास जी खुद ये गीत गाते हुये दिखायी और सुनाई देते है ! आईये लुफ्त उठाते है गझल का !

चिट्ठी आई है आई है
चिट्ठी आई है
चिट्ठी आई है वतन से
चिट्ठी आई है

बड़े दिनों के बाद,
हम बेवतनों को याद
वतन की मिट्टी आई है,
चिट्ठी आई है ...

तो हुआ यु है,  के वतन से और घरवालोसे दूर रेहनेवालो के नाम एक चिठ्ठी आई है , एक जमाना था जब लोग चिठ्ठीया लिखा करते थे और वो पहुचती भी   बडी देर से ! आज कल के इमेल , मोबाईल के जमाने मे चिठ्ठीयो का महत्व समझाना थोडा मुश्कील है , फिर भी कोशिश करता हुं !

 तो हुआ यु है  के वतन से, घरवालोसे दूर रेहनेवालो के नाम एक चिठ्ठी आई है ! बडे दिनो के बाद आई है , यहा   "बेवतन" शब्द का इस्तेमाल किया है , जिसका मतलब है , अपना वतन होते हुए भी वतन से दूर रहने वाले , एन.आर आई  केहलिजिये ! अजीब बात तो ये है  के,  ये चिठ्ठी एक बाप ने अपने बेटे को लिखी है, बेटा अकेला परदेस मे है  और बाप उसे घरका हाल बता रहा है , आम तौर पर ये "बाप" लोग,  जवान बेटोसे दुरिया बनाकर रहते है , दिलकी बात नही बताते , लेकिन यहा किस्सा और है ! खैर  लिखा क्या है चिठ्ठीमे ?

उपर मेरा नाम लिखा है,
अंदर ये पैग़ाम लिखा है
ओ परदेस को जाने वाले,
लौट के फिर ना आने वाले
सात समुंदर पार गया तू,
हमको ज़िंदा मार गया तू
खून के रिश्ते तोड़ गया तू,
आँख में आँसू छोड़ गया तू
कम खाते हैं कम सोते हैं,
बहुत ज़्यादा हम रोते हैं


एक पिता कह रहा है बेटेसे के  "हमको ज़िंदा मार गया तू" ! बहोत तकलीफ है इस बात मे , एक तो जिंदा होते हुए भी मरने का अहसास और इस अवस्था कारन कोई अपना, ! तो खाने और सोने से ज्यादा वक्त रोने मे जाना तो लाजमी है !  आगे देखिये घर का हाल कैसा है ,

सूनी हो गईं शहर की गलियाँ,
काँटे बन गईं बाग की कलियाँ
कहते हैं सावन के झूले,
भूल गया तू हम नहीं भूले

तेरे बिन जब आई दीवाली,
दीप नहीं दिल जले हैं खाली
तेरे बिन जब आई होली,
पिचकारी से छूटी गोली
पीपल सूना पनघट सूना
घर शमशान का बना नमूना
फसल कटी आई बैसाखी,
तेरा आना रह गया बाकी


पिता कह रहा है  के सबकुछ् तो   हो रहा है शहर मे , लेकिन हम लोग ही है जो जिंदगीका मजा नही ले पां रहे है ! "घर शमशान का बना नमूना" जैसी पंक्तीया दिल के दर्द को बडी सटीक तरिकेसे बया करती है ! होली मे पीचकारी से निकला रंग ऐसा कहर डालता है जैसे गोली चला दी हो किसीने, ऐसी पंक्तियोपे दाद देना भी दुभर और ना देना भी  !

लेकिन घर का ये हाल बेटे के जाने भरसे हुआ है ? या बात कुछ और है ! चलिये अंतिम अंतरा सुनते है

पहले जब तू खत लिखता था
काग़ज़ में चेहरा दिखता था
बूँद हुआ यह मेल भी अब तो,
ख़तम हुआ यह खेल भी अब तो
डोली में जब बैठी बहना,
रास्ता देख रहे थे नैना
मैं तो बाप हूँ मेरा क्या है,
तेरी माँ का हाल बुरा है
तेरी बीवी करती है सेवा,
सूरत से लगती है बेवा
तूने पैसा बहुत कमाया,
इस पैसे ने देश छुड़ाया
पंछी पिंजरा तोड़ के आजा,
देश पराया छोड़ के आजा
आजा उम्र बहुत है छोटी,
अपने घर में भी हैं रोटी,
चिट्ठी आई है

    पहले जब तू खत लिखता था, काग़ज़ में चेहरा दिखता था ! खत मे चेहरा दिखता है ? दिखता है जनाब , आवाज से दिलका हाल बया होता है और लब्जोमे चेहरा दिखता है , बस नजर चाहिये ! लेकिन बाद मे ये खत कम होते गये , बेटा ना बहन की शादी नाही आया , पत्नी को लेने नही आया , मां को देखने नही आया ! क्यू भई , क्या हुआ परदेस मे,  के अपने बेगाने हो गये ? "पंछी पिंजरा तोड़ के आजा" ये पंक्ती समस्या की तरफ इशारा करती है , समस्या है पैसे क्या मोह , इस पैसे के चक्कर मे आदमी कैदी बन जाता है , घर की रोटी काफी होती है लेकिन रास नही आती !

 क्यो चाहिये आदमी को पैसा ? क्या है इसमे ऐसा ? माना काफी सारे चीजे खरिदी जा सकती पैसे से ! लेकिन क्या जिंदगी से बडा है पैसा , अपनोके प्यार से बडा है पैसा , जिंदगी को जिये बिना पैसे के पिछे भागना क्या वाकई मे समजदारी है ? पता नही साहब , अपना अपना किस्सा है !

    अंतमे  एक बात जनहित मे जारी कर पुछ्ता  हुं ,क्या हालही मे आपको को ऐसा को खत तो नही आया ? अरे हा, आजकल खत या चिठ्ठी कोई लिखता है भला ! लेकिन कही ऐसा  तो नही के एकाद फोन , एस एम एस , व्हाटसं अप , इमेल के रूप मे आपके घर से कोई चिठ्ठी आई हो ? देख लीजीयेगा !

रणधीर पटवर्धन 

जनहित मे जारी 8

   जनहित मे जारी 8

  मेरा नाम जोकर 1970 में राज कपूर द्वारा निर्देशित और अभिनीत  फिल्म है।फ़िल्म एक जोकर की कहानी है । कहानी में दिखाया गया है कि एक जोकर ख़ुद के ग़मों और दुःखों को भुला, सब को खूब हँसाता है।आज जिस गीत का जिक्र होगा यह गीत लिखा है कवि/गीतकार "नीरज" ने [लेकिन अभी भी कई लोग यह समझते हैं कि यह गीत या तो शैलेन्द्र ने लिखा है या हसरत जयपुरी ने... ] और गाया है  मन्ना डेने [इसी गीत के लिये मन्ना डे को सर्वश्रेष्ठ गायक पुरस्कार से नवाज़ा गया था]  फ़िल्म का संगीत शंकर-जयकिशन ने दिया था।इस गीत मे सर्कस और असाल जिंदगीकी समानताये गीनाकार मनुष्य के जीवन को सर्कस बताया गया है , 

    सिच्युएशन ऐसी है के सर्कस का जोकर समझा रहा के असल मे आदमी क्यू और कैसे संभलकर रहना चाहिये !चलिये समझने की कोशिश करते है !


ऐ भाई 
जरा देख के चलो
आगे ही नहीं पीछे भी, 
दायें ही नहीं बाँये भी
ऊपर ही नहीं, नीचे भी.. 
ऐ भाई..
तू जहाँ आया है,
 वो तेराघर नहीं, 
गाँव नहीं, कूचा नहीं, 
रस्ता नहीं, 
दुनिया है..

समझे साहब , आप जिस जगह रहते हो उसे दुनिया केहते है , और आपको चौकन्ना रहना पडेगा ! क्यू चौकन्ना रहना पडेगा  हमे ? ये जानने के लिये आगे बढे और जानिये दुनिया की कुछ सच्चाइया 

और प्यारे दुनिया ये सरकस है 
और सरकस में..बडे को भी छोटे को भी, दुबले को भी मोटे को भी, खरे को भी खोटे भी
 रिंग मास्टर के कोडे़ पर...
कोडा़ जो भूख है, 
कोडा़ जो पैसा है, 
कोडा़ जो किस्मत है,
तरह-तरह नाच के 
दिखाना यहाँ पडता है,
बार-बार रोना और
 गाना यहाँ पडता है,
हीरो से जोकर 
बन जाना पडता है...
ऐ भाई...

ऊपर से नीचे को, 
नीचे से ऊपर को 
आना-जाना पडता है..

तो समझे आप, ये दुनिया  सर्कस है और हम जो भी करते है वो "कोडे " के डर की वजह से करते है , जीवन मे उपर और नीचे जाना , हिरो और जोकर बनना, नाचना , गाना, सब कोडे की डर की वजह से  ! और कोडा क्या है , कोडा पैसा है , कोडा भूक है , कोडा किस्मत है ! मुझे लगता है इसको अगर ठीक से समझे ,तो इसका एक और मतलब भी निकलता है,  के अगर कोडे का डर नही होता,तो हम अपनी मर्जी के मालिक होते ! याने सत्ता , पैसा इनके लोभ मे न फसे तो मुन्कीन है के जिंदगीसे डर निकल जायेगा, लेकिन क्या हम कर पायेंगे ऐसा ? खैर अगला अंतरा देखिये जिसमे सर्कस के और जानवर और मनुष्य का भेद दिखाया है ! ...
क्या है करिश्मा,
 कैसा खिलवाड है,
जानवर आदमी से 
ज्यादा वफ़ादार है,
खाता है कोडा भी, 
रहता है भूखा भी
फ़िर भी वो मालिक पर
 करता नहीं वार है
और इन्सान 
माल जिसका खाता है
प्यार जिससे पाता है
गीत जिसके गाता है
उसके ही सीने में 
भोंकता कटार है

     अजीब सी सच्चाई है इस अंतरे मे , अचरज की बात ये है के ऐसा हर इन्सान को लगता है  के ज्यादातर इन्सान अहसान फरामोश होते है , अगर हर किसिको लगता है तो इसका मतलब ,मै और आप भी तो सामील है इसमे ! क्यू इन्सान माल जिसका खाता है,प्यार जिससे पाता है,गीत जिसके गाता है,उसके ही सीने में ,भोंकता कटार है! इसका एक जवाब ये भी हो सकता है के , जो माल या प्यार देता है वह शायद दुसरे हात से दुगने दाम वसुल भी करता होगा ! तो अगर ये सच है, तो हमे या तो ऐसा नही करना चाहिये या फिर सिने मे कटार लेने की तय्यारी करनी चाहिये ! अगले अंतरे मे शायर बताता है क्यू इन्सान को हार से डरना नही चाहिये , चलिये जानते है

गिरने से डरता है क्यों,
 मरने से डरता है क्यों
ठोकर तू जब तक ना खायेगा
पास किसी गम को न 
जब तक बुलायेगा
जिन्दगी है राज क्या, 
नहीं जान पायेगा
रोता हुआ आया है, 
रोता चला जायेगा..
ऐ भाई...

ठोकर तू जब तक ना खायेगा, जिन्दगी है राज क्या, नहीं जान पायेगा, याने शायर का मानना है जिंदगी मे मिली हार आदमी को ज्यादा शिक्षित करती है ! वाकई ? और ये सही है तो हम स्ब जीत के लिये इतने उतावले व हार से इतना डरते क्यू है ? और जिंदगी का ऐसा कौनसा राज है जो बस हार ही हमको सिखा सकती है ? मुझे लगता है के गीतकार ये समझाने की कोशिश कर रहा है के हार जिंदगीका हिस्सा है और उसे हमेसिखाकर  उभारना चाहिये नाके मायूस होना चाहिये ! अब हम बढ रहे है अंतिम अंतरे की तरफ , जिसमे ये बताया गया है के अंत मे राजा हो या रंक , अमीर हो या गरीब सबका खेल एक दिन खतम होना है ! आईये जानते है सर्कस और इन्सान के जीवन की एक और समानता 

हाँ बाबू..

ये सर्कस  है..
और ये सर्कस है 
शो तीन घंटे का..
पहला घंटा बचपन है,
दूसरा जवानी है,
तीसरा बुढापा..
और इसके बाद
माँ नहीं, बाप नहीं, 
बेटा नहीं, बेटी नहीं,
 तू नहीं, मैं नहीं, 
ये नहीं, वो नहीं
कुछ भी नहीं रहता है
रहता है जो कुछ बस 
खाली-खाली कुर्सियाँ हैं, 
खाली-खाली तम्बू है
खाली-खाली डेरा है,
बिना चिडिया का बसेरा है,
ना तेरा है ना मेरा है...

चलिये मान लिया खाली-खाली कुर्सियाँ हैं, खाली-खाली तम्बू हैखाली-खाली डेरा है,बिना चिडिया का बसेरा है, ना तेरा है ना मेरा है !  लेकिन फिर ये खाली तंबू किसका है , उनका जो ये "शो" देखने आते है ? लेकिन वो भी तो किसी और सर्कस मे अपना खेल दिखाते है ? तो ये खाली तंबू किसका है  कही ऐसा तो नही के सर्कस अपने आप मे एक रींग मास्टर हो ? प्रेक्षक भी हो ?अगर ऐसा है तो फिर  ये "शो " किया क्यू जा रहा है ? पूछे किससे?इस गीत के सारे रचनाकार जा चुके है ! तो फिर एक बार कुछ आधे अधुरे सवालो के साथ आप को छोडकर मै आपकी इजाजत लेता हुं , मिलते है अगले हप्ते , तब तक जिंदगी नामक सर्कस मे भाग लीजीयेगा और औरोके खेल का मजा लीजीयेगा , नमस्कार 

रणधीर पटवर्धन
.

Saturday 27 June 2015

जनहित मे जारी - ६

जनहित मे जारी - ६

  परदेस से  याने के अलग मुल्योंके देस से एक संगीतकार और गायक भारत मे संगीत सिखने गुरु के घर रहता है , उसके बेटी और  वह प्यार कर बैठते है, गुरुदक्षिणा के ऐवज मे उसे प्यार की कुर्बानी देनी पडती है,गुरु की बेटी कही और बिहाई जाती है , शादीके बाद उसका पती उसे पिया से मिलाने की ठान लेता है , अंत मे संस्कार जीतते है, प्रेम हार जाता है !
    अब तक बताई गई कहानी है 1999  मे प्रदर्शित और संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित फिल्म हम दिल दे चुके सनम की !यह फिल्म नसिरुद्दीन शाह , अनिल कपूर और पद्मिनी कोल्हापुरे द्वारा अभिनीत फिल्म "वो सात दिन " से काफी प्रभावीत है और वो सात दिन प्रभावीत है काफी सारे दक्षिण भारतीय फिल्मोसे ! हम दिल दे चुके सनम के संगीतकार है इस्माईल दरबार , गीतकार है मेहबुब और जिस गाने का आज जिक्र होगा उसे गाया है गायक  "के  के" ने !

 यह गाणं  फिल्म के दौरान उस वक्त सुनाई देता है जब गुरुदक्षिणा के ऐवज मे अपने प्यार की कुर्बानी दे कर फिल्म का नायक गुरु का घर छोड अपने देस वापिस जा रहा है , उसकी प्रेमिका घर के छत से देखते हुये भी,  न चाहते हुये भी उसे जाने दे रही है ! गाना अपने मुखडे तक एक शेर के बाद पहूचता है , शेर कुछ् ऐसा है

बेजान दिल को तेरे 
इश्क ने जिंदा किया
फिर तेरे इश्क ने ही 
इस दिल को तबाह किया

मतलब बस इश्क ही बनाता है और इश्क ही तबाह कर देता है ! चलिये मुखडे की तरफ बढते है !

तड़प तड़प के
 इस दिल से
आह निकलती रही 
मुझको सजा दी प्यार की 
ऐसा क्या गुनाह किया
तो लुट गए 
हाँ लुट गए
तो लुट गए 
हम तेरी मोहब्बत में

 ठीक ध्यान दिजीयेगा नायक पुछ् रहा है, के भई प्यार ही तो किया था , ऐसा क्या गुनाह किया ? के लुट गये यांनी तबाह और बरबाद हो गये ! इसका  मतलब, वह  इस बात से अंजान है के हालाकी प्यार करना जुर्म नही है मगर " किससे प्यार हुआ है, किंस हालात मे प्यार किया है ? प्रेमियोंकी पार्श्वभूमी क्या है ? जैसे सवालो के जवाब प्यार को गुनाह बना देते है ! और गुनाह  की सजा तो भुगतनी पडती है ! सारी अमर प्रेम कहानिया इस बात की गवाह है ! खैर चलिये  अंतरे की तरफ बढते है

अजब है इश्क यारा
पल दो पल की खुशियाँ
गम के खजाने मिलते हैं
मिलती है तन्हाईयाँ
कभी आंसूं कभी आहें
कभी शिकवे कभी नालें
तेरा चेहरा नज़र आये
तेरा चेहरा नज़र आये 
मुझे दिन के उजालों में
तेरी यादें तड़पाएं
तेरी यादें तड़पाएं 
रातों के अंधेरों में
तेरा चेहरा नज़र आये
मचल-मचल के इस दिल से 
आह निकलती रही 
मुझको सजा दी प्यार की 
ऐसा क्या गुनाह किया.

   अब दुविधा देखिये इस बंदे की , वह असफल प्रेम की आग मे झुलस रहा है , उसका जीना किसी सजा से कम नही है ! और तो और, उसे ये समजमे नही आ रहा है के, आखिर उसे सजा किस बात की मिल रही है ! बस जिंदगी जैसे उसकी दुश्मन बन गयी है ! बस एकही सवाल उसे खाये जा रहा है के "मुझको सजा दी प्यार की 
ऐसा क्या गुनाह किया" !  जिस अंदाज से इस्माईलने ने इस गीत को संगीतबद्ध किया है और के के ने गाया है , यह गीत दिल को छुए बिना रह नही सकता ! सुनने वाला इन्सान अगर थोडा बहोतभी संवेदनशील है, तो वह एकबार ही सही, लेकिन किरदार के दर्द को महसूस तो जरूर करेगा ! चलिये गीत के अंतिम अंतरे को देखते है 
जहा उसने अब तय कर लिया है के अब वह सवाल सीधा खुदा से पुछेगा , लेकिन क्या सवाल पूछेगा?  वो  आईये जानते  है 

अगर मिले खुदा तो
पूछूंगा खुदाया
जिस्म मुझे देके मिट्टी का
शीशे सा दिल क्यों बनाया
और उस पे दिया फितरत
के वो करता है मोहब्बत
वाह रे वाह तेरी कुदरत
वाह रे वाह तेरी कुदरत 
उस पे दे दिया किस्मत
कभी है मिलन कभी फुरक़त
कभी है मिलन कभी फुरक़त 
 क्या यही  है वो मोहब्बत
वाह रे वाह तेरी कुदरत
सिसक-सिसक के इस दिल से 
आह निकलती रही है
मुझको सजा दी प्यार की 
ऐसा क्या गुनाह किया

      सवाल को समझीये , वह पुछ रहा है के एक  इतना  मजबूत शरीर देकर   कमजोर दिल क्यू दिया ? और फिर मुहोब्बत नामक भावना को क्यू दिल मे पनपने दिया , उपरसे किस्मत नामक अंजान चीज से प्यार का सफल या असफल होने का नाता क्यू जोड दिया !याने के  ऐसी स्थिती क्यो बनाई , जहा प्यार का असफल होना इन्सान को तो  काफी दर्द देता है लेकिन प्यार का सफल या असफल होना किस्मत पे निर्भर है ! 

    सवाल तो लाजमी है साहब ! और जवाब ?  वह तो वही देगा जिसके ऐसी स्थितिया बनायी है ! तो कुछ सवालोंको ऐसीही छोडकर हम आपकी इजाजत लेते है , मिलते है अगले हप्ते , क्या पता कुछ और सवाल जनहित मे जारी होने के इंतजार मे हो ?

- रणधीर पटवर्धन 

Saturday 20 June 2015

जनहित मे जारी - ५

   जनहित मे जारी  - 5
       शांताराम वणकुद्रे यानी व्‍ही शांताराम की फिल्‍म 'दो आंखें बारह हाथ' सन 1957 में रिलीज़ हुई थी ,इस फिल्‍म में कहानी एक युवा प्रगतिशील और सुधारवादी विचारों वाले जेलर   आदिनाथ की है, जो क़त्‍ल की सज़ा भुगत रहे पांच खूंखार कै़दियों को एक पुराने जर्जर फार्म-हाउस में ले जाकर सुधारने की अनुमति ले लेता है । और तब शुरू होता है उन्‍हें सुधारने की कोशिशों का   आशा -निराशा भरा दौर ।जेलर आदिनाथ अपने क़ैदियों को इसी ताक़त के सहारे सुधारता है, उनके भीतर की नैतिकता को जगाता है । यही नैतिकता उन्‍हें फरार नहीं होने देती । इसी नैतिक बल के सहारे वो कड़ी मेहनत करके शानदार फसल हासिल करते हैं ।  केहते है के मशहूर पुलिस अधिकारी किरण बेदी ने 'दो आंखें बारह हाथ' से ही प्रेरित होकर दिल्‍ली की तिहाड़ जेल में क़ैदियों के रिफॉर्म का कार्यक्रम शुरू किया था और सफलता हासिल की थी
जिस गानेका आज जिक्र होगा उसे लिखा है भरत व्यासजी ने, संगीतबध्य किया है वसंत देसाई ने और गाया है लताजी ने ! बेहतरीन कंपोजीशन । इसके रिदम साईड पर ध्‍यान दीजिए । इस गाने को सुना है के पाकिस्तान मे " राष्ट्र गान " का दर्जा हासिल है ! पता नही, लेकिन जरूरी के वह देश इस गानेको "दिलसे" सुने भी ! खैर इस गानेके रिदम और कोरस पर ध्यान दिजीयेगा, काफी बेहतरीन है  !
 गाने की सिच्युएशन कुछ् ऐसी है के जेलर आदित्यनाथ मरने की कगार पे है और वह ये गाना गाने के लिये कहता है ताकी उसका भी दम हसते हुये निकले और साथ ही सबको जाते हुये भी संदेश मिले ! चलिये गाने की तरफ बढते है ! मुखडा कुछ ऐसा है !
 ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चले और बदी से टले, ताकी हसते हुये निकले दम
 " मालिक " के बंदे कहा गया है इन्सान को और मालिक कौन है हम सब जानते है , और कहा गया है के जीनेका तरीका ऐसा हो के "हसते हुये निकले दम" ! और ये तभी होगा जब हम बदी याने की बुराई से बचे और नेक काम करे ! बात सही है तो फिर कठनाई क्या है ? अगला अंतरा इसके बारेमे बताता है 
ये अंधेरा घना छा रहा, तेरा इन्सान घबरा रहा
हो रहा बेख़बर, कुछ ना आता नज़र, सुख का सूरज छुपा जा रहा
है तेरी रोशनी में जो दम, तो अमावस को कर दे पूनम
इन्सान अंधरे मे है और इसलिये उसे नजर नही आ रहा , ध्यान दिजीये  सही और गलत के बारेमे जो अज्ञान है उसे यहा अंधेरा कहा गया है और  अब बस मालिक  ही है जो इस अमावस यानेकी अंधेरे को पूनम याने उजाले  मे परिवर्तीत कर देगा ! अगले अंतरे मे फिर एक बार समस्या और समाधान के बारे मे जिक्र है 
बड़ा कमजोर है आदमी, अभी लाखों हैं इस में कमी
पर तू जो खड़ा, है दयालू बड़ा, तेरी क्रिपा से धरती थमी
दिया तूने हमें जब जनम, तू ही झेलेगा हम सब के ग़म 
आदमी कमीयो और कमजोरियो से  भरपूर है तो  अपने आप से सुधर तो सकता नही तो अब बस मालिक की  कृपा ही अंतिम समाधान है और क्युके उसी ने हमे निर्मित किया है तो ये जिम्मेदारी उसीकी है ! जो दर्द देगा उसिकोही तो दवा देनी पडेगी ! अंतिम  अंतरे मे मालिक की कृपा किस तरह से होनी चाहिये उसके बारे जिक्र है ! ध्यान दिजीयेगा  

जब जुल्मों का हो सामना, तब तू ही हमें थामना
वो बुराई करे, हम भलाई भरे, नहीं बदले की हो कामना
बढ़ उठे प्यार का हर कदम और मीटे बैर का ये भरम
  मालिक से उम्मीद की गयी है के वह हमे जुल्मो का सामना करनेकी हिम्मत दे और हमारे मन से बदले की भावना को निकाल दे , यहा एक एक और पंगती भी है "वो बुराई करे, हम भलाई भरे"  इस पंक्तीमे हम याने इन्सान , हिंम्मत तो मालिक को देनी है , तो फिर "वो " कौन है जो बुराई करता है ?  
    जनाब ये वो "वो " है जो कहा जाता है के इन्सान  मे मौजूद है और उसे बुरे कर्म करवाता है ! तो असल मे ये जंग खुदसे है , अपने भीतर छिपे बुराई से है , बुरे कर्मे करनेकी चाह से है !  अगर हर इन्सान अपने भीतर की इस बुराई को नियंत्रित कर सके तो ये दुनिया और भी हसीन हो जायेगी ! हमारे मन मे अगर ये  श्रद्धा और भयं हो  के  मालिक सब देख रहा है और  तो भीतर की बुराई को जितना और अच्छायियो को   उभारना आसान हो जायेगा !
  कहा जाता है के  इन्सान के  मानस में नैतिकता की गहरी पैठ है । वही हमारे बर्ताव पर 'वॉचफुल आय' रखती है । हमें भटकने से बचाती है । अगर हमसे कोई ग़लत क़दम उठ जाता है तो हम अपराध-बोध के तले दब जाते हैं । तो बस यही उम्मिद है के उस  " नैतिकता" के निकष सही हो ! उसकी 'वॉचफुल आय' के बारेमे हम हमेशा अवगत हो ! और वह हम सबको बेहतर इन्सान बनाये और हमारा भी  "हसते हुये निकले दम" !  भई इसलिये हमने इस विचार को जनहित मे जारी किया है , तो मिलते है अगले हप्ते 
रणधीर पटवर्धन 

Saturday 13 June 2015

जनहित मे जारी -4

     सागर फिल्म रिलीज हुई थी  1985 मे और ऑस्कर के लिये उस साल की भारत की तरफसे ऑफिशियल एंट्री भी बनी थी ! आप को जानकर हैरानी होगी के इस फिल्म को निर्देशित किया था शोले के डायरेक्टर      रमेश  सिप्पीने ! बॉबी फिल्म के बाद राजेश खन्ना से शादी कर फिल्मोसे सन्यास ले  चुकी डिम्पल कपाडिया की ये कमबॅक फिल्म थी !  डिम्पल , ऋषी  कपूर  और  कमल हसन  की एक दुसरे से दोस्ती और प्यार के      वजहसे होने वाली उलझने   सागर  फिल्म की   कहानी को दिलचस्प बनाते है ! इस फिल्म के गीतकार जावेद     अख्तर है ,संगीतकार है  राहुलदेव बर्मन और जिस गाने का आज जिक्र होगा उसे गाया है   किशोर कुमारने !
       गाने की सिच्युएशन कुछ ऐसी है , नायक ने नायिका को एक मेले के दौरान देखा है और उसको वो पसंद भी आगयी है [ क्यू न हो? हम बात 1985 के डिम्पल  की कर रहे है जनाब]! अब उसे बात आगे बढानी है मगर वह नायिका को जानता तो है नही, तो अब उसने गाने के सहारा लिया है, गाने के बहाने वह   नायिका की तारीफोके पुल बांध रहा है  और बातो ही बातो मे अपने  दिलका पैगाम भी पहुंचा रहा है ! और नायिका है के सबकुछ    जानकर अंजान बनी, गानेका लुफ्त उठा रही है ,अब ये कौशल तो कोई सुंदर युवतीयोसे सीखे , किसीने सच कहा है , हुस्न खुदा देता है मगर अदाये अपने आप आ जाती है ! खैर चलिये गाने की तरफ मुडते है ! मुखडा कुछ् ऐसा है  
चेहरा है या चाँद खिला है,
जुल्फ घनेरी शाम है क्या
सागर जैसी आँखोंवाली
ये तो बता तेरा नाम है क्या?
 क्या कहने जावेद साब ,चेहरे को चांद, और निली आखोंको सागर काफी लोगोने कहा है मगर "घनेरी श्याम" बहोतही सटीक वर्णन है ! इस गानेकी एक और सुंदरता बताऊ इसमे जो गिटार बजता है ना मालिक , बहुतही बढिया बजता है ! कभी हो सके तो इस गाने को "instrumental" पे सुनियेगा , मेरी बात पे फौरन यकीन आ जायेगा ! आईये आगे बढे , पहिला अंतरा देखते है
तू क्या जाने तेरी खातिर 
कितना है बेताब ये दिल
तू क्या जाने देख रहा
है कैसे कैसे ख्वाब ये दिल
लो करलो बात , यहा लडकी के नाम का पता नही और इन्होने खाब देखनेभी सुरु किये, अब आदमी इश्क और प्यार पे पडता है तो ऐसे होना तो लाजमी है , चलिये जानतो ले कैसे खाब है आशिक के,
दिल कहता है
तू है यहा तो 
जाता लम्हा थम जाये
वक्त का दरया बहते
बहते इस मंज़र में जम जाये
वाह वाह जी , नायक चाहता है की बस वक्त यही ठहर जाये , वो सामने हो , ये गाता रहे , प्यार जताता रहे , मैफिल सजी रहे ! सही है भाई , क्या पता वो उसे मिले न मिले , पसंद करे न करे , इससे अच्छा"जाता लम्हा थम जाये"! मगर वक्त किसीके लिये रुका है जनाब , चलिये आगेकी चार लाईने देखते है
तू ने दीवाना दिल को बनाया
इस दिल पर इल्ज़ाम है क्या
सागर जैसी आँखोंवाली
ये तो बता तेरा नाम है क्या?
देखोजी दुनिया का दस्तूर अब दिवाने बने ये, लेकिन दोष उसका है , भई दावत देके थोडेही बुलाया था आपको, लेकिन प्यार सौ खून माफ होते है जी , ये झुठे इल्जाम क्या चीज है ? ! तो अगले अंतरे की तर्फ चलते है !
आज मैं तुझ से दूर
सही और तू मुझ से अन्जान सही
तेरा साथ नहीं पाऊ तो
खैर तेरा अरमान सही
भई गीतकार को दाद फिरसे बनती है , तेरा साथ नहीं पाऊ तो खैर तेरा अरमान सही जैसी बडी बात "' कितनी सहजता से कह गये , सही तो है साहब , सारी पसंद आयी हुई चीजे मिलती थोडी है इस दुनियामे ? लेकिन नाराज ना होकर "अरमान" दिल मे रख आगे बढने मे क्या हर्ज है ? हम भी आगे बढते है , गाना देखिये
ये अरमान है, शोर नहीं हो खामोशी के मेले हो
इस दुनियाँ में कोई
नहीं हो, हम दोनो ही अकेले हो
यहा पे मै इस गाने की धून की विशेषता की तरफ आपका ध्यान लाना चाहुंगा , इस गाने अंतरे के पहली चार पंक्तीया किशोरजी धीरेसे गाते है और फिर एकदम से फिर एकदम उंचा सूर पकड लेते है ! राहुलदेव बर्मन यानेके पंचमदा की यही बात उनको बेमिसाल बनाती है , किशोर कुमार तो नायब है ही ! आईये गाने के अंत की तरफ बढते है
तेरे सपने देख रहा
हूँ, और मेरा अब काम है क्या
सागर जैसी आँखोंवाली
ये तो बता तेरा नाम है क्या?
तेरे सपने देख रहा हुं , और मेरा अब काम है क्या ? सच ही तो है , कभी कभी सपने इतने रंगीन होते है और इतने सच्चे लगते है के और कोई काम सुझता ही नही और "अच्छे दिनोके" आने की राह लोग हररोज देखते है ! लेकिन जनाब सपने तो उन्ही के सच होते है जो उसे देखने की हिम्मत रखते है ! तो सपने जरूर देखिये लेकिन जागीये और अपने सपनो को सच बनाने के लिये पुरी शिद्द्त से जुट जाईये , तभी सागर जैसी आखोवाली के साथ सागर किनारे दिल ये पुकारे वाला भी गाणं नसीब होगा ! समझे ? नही समझे तो अगले हप्ते फिर जनहित मे जारी करेंगे कुछ् और बाते , तब तक के लिये नमस्कार !
रणधीर पटवर्धन 

Saturday 6 June 2015

जनहित मे जारी - 3

  जनहित मे जारी 

       सत्या फिल्म रिलीज हुई 1998 मे, राम गोपाल वर्मा निर्देशक है  , संगीत विशाल भारद्वाज का है , गीत लिखे है गुलजारजीने , जिस गीत का आज जिक्र होगा उसको गाया है  आशा भोंसले और  सुरेश वाडेकरजीने , सत्या एक अजीब किसम की फिल्म है,  इस फिल्मके  99% किरदार गलत काम करते है , उनको ये पता है के  जो वो काम कर रहे  है वो हर लिहाज से गलत है , लेकिन उसमेसे किसिके मन मे जराभी अपराधभाव नही है और  नाही ये दिखाया गया है के उसमेसे किसीके पास ऐसा करने कोई ठोस वजह है !
          खैर चलिये गीत तरफ मुडते है , हम सब जानते है के व्यक्ती जब अपनी भावनावोंको बयां करता है, तो वह  वही लब्ज इस्तेमाल करता है, जो लब्ज वह और उसकी दुनिया के लोग आमतौरपर बात करते वक्त इस्तेमाल करते है ! लेकिन फिल्मो ऐसा काफी कम देखने को मिला है के, किरदार जिस माहौल मे रचा ढला और  पला बढा हो गीत के बोल भी वैसेही ही हो ! लेकिन इस फिल्म के एक गीत मे किरदारोंको अपनी जबान मे अपनी भावनावोंको बयां करता हुआ दिखाया है !

सिच्युएशन ऐसी है के एक शादी मे माफिया गिरोह के लोग अपने घरवालोके साथ सामील हुए है ! गिरोह का मुखिया और उसकी बीवी एक दुसरे को छेडते हुए सबके साथ नाच गा रहे है ! अब गिरोह का मुखिया और उसकी बीवी शहर मे तो जरूर पले बढे है लेकिन कोई ज्यादा पढे लिखे तो है नही, तो देखिये कैसे वो एक दुसरे को यह  वर्णन कर बता रहे है  के उनके सपनोका राजकुमार या राजकुमारी कैसी है !

सपने में मिलती है
ओ कुड़ी मेरी, सपने में मिलती है
सारा दिन घुँघटे में बंद गुड़िया सी
अँखियों में घुलती है

सपने में मिलता है
ओ मुण्डा मेरा, सपने में मिलता है
सारा दिन सड़कों पे खाली रिक्शे सा
पीछे-पीछे चलता है


  मैने इस गानेसे पेहले कभीभी अपने पिछे पिछे भागने वाले अपने प्रियतम प्यारे को "खाली रिक्शे" की उपमा से अलंकृत किया हुआ नही सुना ! आज भी जब कभी एकाद खाली रिक्शा जब मेरे या किसी और के इर्द गिर्द घुमता हुआ पाता हुं तो मुझे ये गीतपंक्तीया जरूर याद आती है ! अब आगे बढते है , अब देखिये अपनी प्रियतमा को किस नजर से देखता है इस गीत का नायक 

कोरी है, करारी है
भून के उतारी है
कभी-कभी मिलती है
ओ कुड़ी मेरी, सपने में मिलती है


यहा गीत का नायक नायिका को सीधा सीधा "भुट्टा" कह रहा है , ये कमाल तो बस गुलजारजी ही कर सकते है , चलिये अब सुनते है के नायक के शक्लो-सुरत का बखान नायिका किस तरह कर रही है 

ऊँचा लम्बा कद है
चौड़ा भी तो हद है
दूर से दिखता है
ओ मुण्डा मेरा...
अरे देखने में तगड़ा है
जंगल से पकड़ा है
सींग दिखाता है
सपने में मिलता है...

हद हो गयी मायबाप , क्या दुरसे दिखना भी किसीके व्यक्तीत्वं के गुणोमे सामील हो सकता है ?क्या कोई सरे आम अपने प्रियतम को  जंगल से पकडा हुआ तगडा जानवर बुला सकती है ? लेकिन यहा वो कह भी रही है और ये सुनकर उसके शौहर साब बडे खुश भी हो रहे है ! आगे देखिये नायक कहता है के उसकी प्रियतमा तो 
पाजी है, शरीर है
घूमती लकीर है
चकरा के चलती है
सपने में मिलती है...


लो करलो बात , ये सुनकर  वह कहती है के

अरे कच्चे पक्के बेरों से
चोरी के शेरों से
दिल बहलाता है
रे मुण्डा मेरा. 
सपने में मिलता है...

ध्यान दिजीयेगा प्रियतमा को ये पता है के, वह जो शेर उसको अपने कहकर सुनाता है, वह असल मे  किसी और के है लेकिन उसे फिर भी वो पसंद है ! अब देखिये वह उसकी सुंदरता को कैसे समझा रहा है 

हाय गोरा चिट्टा रंग है
चाँद का पलंग है
चाँदनी में धुलती है
हो कुड़ी मेरी...

दूध का उबाल है
हँसी तो कमाल है 
मोतियों में तुलती है
सपने में मिलती है...

क्या आपने कभी अपनी मेहबुबा को  चाँद का पलंग, दूध का उबाल कहने बारे मे सोचा भी है ? लेकिन यहा ये जनाब कह भी रहे है और उनकी मेहबुबा को ये सुनकर बडा मजा भी आ रहा है , साहब ऐसा इसलिये हो रहा है क्योकि जिन उदाहरणोका वह इस्तेमाल कर रहा है , उन सभी को यह भली भाती समझती है और इसलिये इन उदाहरणोके पिछे छुपे भावनावोंको भी वह समज रही है !

अंत मे वह कहती है

नीम शरीफ़ों के
एंवें लतीफ़ों के क़िस्से सुनाता है
सपने में मिलता है...


यांनी उसका मेहबुब उसे इसलिये पसंद है क्योकि वह उसको दुनिया किस्से और लतीफे सुनाता है , एक राज की बात मै बता दु ,  जो इन्सान अपने पत्नी या मेहबुबा को हसा सकता है उसे औरते काफी पसंद करती है  !

तो हम सब जानते है के प्रेम की कोई एक भाषा नही होती , लेकिन जनाब ये बहोत जरुरी है के जिसको हम अपने दिल का राज बता रहे हो, उसे हमारी भाषा समझमे तो आनीही चाहिये ! बस इस बात का खयाल रखीयेगा के   और देखिये आपका फायदा ही होगा ! भई इसीलिये तो हमने जनहित मे जारी किया है ! तो मिलते है अगली बार , धन्यवाद !