जनहित मे जारी - 7
1980 प्रदर्शित फिल्म "नाम" , महेश भट्ट द्वारा निर्देशित एक सुपरहिट फिल्म थी, स्क्रीन प्ले लिखा था सलमान खान के पिता सलीम खानजीने , सलीम -जावेद जोडीने 27 सुपर हिट फिल्मे दी , अलग होने बाद सलीम खान द्वारा लिखी हुई "नाम" पहली फिल्म थी , कहानी कुछ इस प्रकार की थी , एक मां के दो बेटे , एक बेटा दुबई जाता है पैसे कमाने ने के लिये, वहा न चाहते हुए भी ड्रग्ज के कारोबार मे उलझ जाता है और मारा जाता है , पिछे छोड जाता है बुढी मां, भाई और गर्भवती पत्नी !
जिस गाने का जिक्र होगा उसे बिसवी सदी के बेस्ट १०० सॉंग्ज की श्रेणी मे बी.बी.से. ने सामील किया है , संगीत दिया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने और गीत को लिखा है आनंद बक्षीजीने !सच पूछिये तो ये गझल है , जिसे गाया है पंकज उधास ने ! गाने की सिच्युएशन ऐसी है के, फिल्म के नायक और नायिका अपने घरसे दूर दुबई मे है और दिल बेहलाने के लिये गाने की महफिल मे जाते है ! और वहा गायक पंकज उधास जी खुद ये गीत गाते हुये दिखायी और सुनाई देते है ! आईये लुफ्त उठाते है गझल का !
चिट्ठी आई है आई है
चिट्ठी आई है
चिट्ठी आई है वतन से
चिट्ठी आई है
बड़े दिनों के बाद,
हम बेवतनों को याद
वतन की मिट्टी आई है,
चिट्ठी आई है ...
तो हुआ यु है, के वतन से और घरवालोसे दूर रेहनेवालो के नाम एक चिठ्ठी आई है , एक जमाना था जब लोग चिठ्ठीया लिखा करते थे और वो पहुचती भी बडी देर से ! आज कल के इमेल , मोबाईल के जमाने मे चिठ्ठीयो का महत्व समझाना थोडा मुश्कील है , फिर भी कोशिश करता हुं !
तो हुआ यु है के वतन से, घरवालोसे दूर रेहनेवालो के नाम एक चिठ्ठी आई है ! बडे दिनो के बाद आई है , यहा "बेवतन" शब्द का इस्तेमाल किया है , जिसका मतलब है , अपना वतन होते हुए भी वतन से दूर रहने वाले , एन.आर आई केहलिजिये ! अजीब बात तो ये है के, ये चिठ्ठी एक बाप ने अपने बेटे को लिखी है, बेटा अकेला परदेस मे है और बाप उसे घरका हाल बता रहा है , आम तौर पर ये "बाप" लोग, जवान बेटोसे दुरिया बनाकर रहते है , दिलकी बात नही बताते , लेकिन यहा किस्सा और है ! खैर लिखा क्या है चिठ्ठीमे ?
उपर मेरा नाम लिखा है,
अंदर ये पैग़ाम लिखा है
ओ परदेस को जाने वाले,
लौट के फिर ना आने वाले
सात समुंदर पार गया तू,
हमको ज़िंदा मार गया तू
खून के रिश्ते तोड़ गया तू,
आँख में आँसू छोड़ गया तू
कम खाते हैं कम सोते हैं,
बहुत ज़्यादा हम रोते हैं
एक पिता कह रहा है बेटेसे के "हमको ज़िंदा मार गया तू" ! बहोत तकलीफ है इस बात मे , एक तो जिंदा होते हुए भी मरने का अहसास और इस अवस्था कारन कोई अपना, ! तो खाने और सोने से ज्यादा वक्त रोने मे जाना तो लाजमी है ! आगे देखिये घर का हाल कैसा है ,
सूनी हो गईं शहर की गलियाँ,
काँटे बन गईं बाग की कलियाँ
कहते हैं सावन के झूले,
भूल गया तू हम नहीं भूले
तेरे बिन जब आई दीवाली,
दीप नहीं दिल जले हैं खाली
तेरे बिन जब आई होली,
पिचकारी से छूटी गोली
पीपल सूना पनघट सूना
घर शमशान का बना नमूना
फसल कटी आई बैसाखी,
तेरा आना रह गया बाकी
पिता कह रहा है के सबकुछ् तो हो रहा है शहर मे , लेकिन हम लोग ही है जो जिंदगीका मजा नही ले पां रहे है ! "घर शमशान का बना नमूना" जैसी पंक्तीया दिल के दर्द को बडी सटीक तरिकेसे बया करती है ! होली मे पीचकारी से निकला रंग ऐसा कहर डालता है जैसे गोली चला दी हो किसीने, ऐसी पंक्तियोपे दाद देना भी दुभर और ना देना भी !
लेकिन घर का ये हाल बेटे के जाने भरसे हुआ है ? या बात कुछ और है ! चलिये अंतिम अंतरा सुनते है
पहले जब तू खत लिखता था
काग़ज़ में चेहरा दिखता था
बूँद हुआ यह मेल भी अब तो,
ख़तम हुआ यह खेल भी अब तो
डोली में जब बैठी बहना,
रास्ता देख रहे थे नैना
मैं तो बाप हूँ मेरा क्या है,
तेरी माँ का हाल बुरा है
तेरी बीवी करती है सेवा,
सूरत से लगती है बेवा
तूने पैसा बहुत कमाया,
इस पैसे ने देश छुड़ाया
पंछी पिंजरा तोड़ के आजा,
देश पराया छोड़ के आजा
आजा उम्र बहुत है छोटी,
अपने घर में भी हैं रोटी,
चिट्ठी आई है
पहले जब तू खत लिखता था, काग़ज़ में चेहरा दिखता था ! खत मे चेहरा दिखता है ? दिखता है जनाब , आवाज से दिलका हाल बया होता है और लब्जोमे चेहरा दिखता है , बस नजर चाहिये ! लेकिन बाद मे ये खत कम होते गये , बेटा ना बहन की शादी नाही आया , पत्नी को लेने नही आया , मां को देखने नही आया ! क्यू भई , क्या हुआ परदेस मे, के अपने बेगाने हो गये ? "पंछी पिंजरा तोड़ के आजा" ये पंक्ती समस्या की तरफ इशारा करती है , समस्या है पैसे क्या मोह , इस पैसे के चक्कर मे आदमी कैदी बन जाता है , घर की रोटी काफी होती है लेकिन रास नही आती !
क्यो चाहिये आदमी को पैसा ? क्या है इसमे ऐसा ? माना काफी सारे चीजे खरिदी जा सकती पैसे से ! लेकिन क्या जिंदगी से बडा है पैसा , अपनोके प्यार से बडा है पैसा , जिंदगी को जिये बिना पैसे के पिछे भागना क्या वाकई मे समजदारी है ? पता नही साहब , अपना अपना किस्सा है !
अंतमे एक बात जनहित मे जारी कर पुछ्ता हुं ,क्या हालही मे आपको को ऐसा को खत तो नही आया ? अरे हा, आजकल खत या चिठ्ठी कोई लिखता है भला ! लेकिन कही ऐसा तो नही के एकाद फोन , एस एम एस , व्हाटसं अप , इमेल के रूप मे आपके घर से कोई चिठ्ठी आई हो ? देख लीजीयेगा !
रणधीर पटवर्धन
1980 प्रदर्शित फिल्म "नाम" , महेश भट्ट द्वारा निर्देशित एक सुपरहिट फिल्म थी, स्क्रीन प्ले लिखा था सलमान खान के पिता सलीम खानजीने , सलीम -जावेद जोडीने 27 सुपर हिट फिल्मे दी , अलग होने बाद सलीम खान द्वारा लिखी हुई "नाम" पहली फिल्म थी , कहानी कुछ इस प्रकार की थी , एक मां के दो बेटे , एक बेटा दुबई जाता है पैसे कमाने ने के लिये, वहा न चाहते हुए भी ड्रग्ज के कारोबार मे उलझ जाता है और मारा जाता है , पिछे छोड जाता है बुढी मां, भाई और गर्भवती पत्नी !
जिस गाने का जिक्र होगा उसे बिसवी सदी के बेस्ट १०० सॉंग्ज की श्रेणी मे बी.बी.से. ने सामील किया है , संगीत दिया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने और गीत को लिखा है आनंद बक्षीजीने !सच पूछिये तो ये गझल है , जिसे गाया है पंकज उधास ने ! गाने की सिच्युएशन ऐसी है के, फिल्म के नायक और नायिका अपने घरसे दूर दुबई मे है और दिल बेहलाने के लिये गाने की महफिल मे जाते है ! और वहा गायक पंकज उधास जी खुद ये गीत गाते हुये दिखायी और सुनाई देते है ! आईये लुफ्त उठाते है गझल का !
चिट्ठी आई है आई है
चिट्ठी आई है
चिट्ठी आई है वतन से
चिट्ठी आई है
बड़े दिनों के बाद,
हम बेवतनों को याद
वतन की मिट्टी आई है,
चिट्ठी आई है ...
तो हुआ यु है, के वतन से और घरवालोसे दूर रेहनेवालो के नाम एक चिठ्ठी आई है , एक जमाना था जब लोग चिठ्ठीया लिखा करते थे और वो पहुचती भी बडी देर से ! आज कल के इमेल , मोबाईल के जमाने मे चिठ्ठीयो का महत्व समझाना थोडा मुश्कील है , फिर भी कोशिश करता हुं !
तो हुआ यु है के वतन से, घरवालोसे दूर रेहनेवालो के नाम एक चिठ्ठी आई है ! बडे दिनो के बाद आई है , यहा "बेवतन" शब्द का इस्तेमाल किया है , जिसका मतलब है , अपना वतन होते हुए भी वतन से दूर रहने वाले , एन.आर आई केहलिजिये ! अजीब बात तो ये है के, ये चिठ्ठी एक बाप ने अपने बेटे को लिखी है, बेटा अकेला परदेस मे है और बाप उसे घरका हाल बता रहा है , आम तौर पर ये "बाप" लोग, जवान बेटोसे दुरिया बनाकर रहते है , दिलकी बात नही बताते , लेकिन यहा किस्सा और है ! खैर लिखा क्या है चिठ्ठीमे ?
उपर मेरा नाम लिखा है,
अंदर ये पैग़ाम लिखा है
ओ परदेस को जाने वाले,
लौट के फिर ना आने वाले
सात समुंदर पार गया तू,
हमको ज़िंदा मार गया तू
खून के रिश्ते तोड़ गया तू,
आँख में आँसू छोड़ गया तू
कम खाते हैं कम सोते हैं,
बहुत ज़्यादा हम रोते हैं
एक पिता कह रहा है बेटेसे के "हमको ज़िंदा मार गया तू" ! बहोत तकलीफ है इस बात मे , एक तो जिंदा होते हुए भी मरने का अहसास और इस अवस्था कारन कोई अपना, ! तो खाने और सोने से ज्यादा वक्त रोने मे जाना तो लाजमी है ! आगे देखिये घर का हाल कैसा है ,
सूनी हो गईं शहर की गलियाँ,
काँटे बन गईं बाग की कलियाँ
कहते हैं सावन के झूले,
भूल गया तू हम नहीं भूले
तेरे बिन जब आई दीवाली,
दीप नहीं दिल जले हैं खाली
तेरे बिन जब आई होली,
पिचकारी से छूटी गोली
पीपल सूना पनघट सूना
घर शमशान का बना नमूना
फसल कटी आई बैसाखी,
तेरा आना रह गया बाकी
पिता कह रहा है के सबकुछ् तो हो रहा है शहर मे , लेकिन हम लोग ही है जो जिंदगीका मजा नही ले पां रहे है ! "घर शमशान का बना नमूना" जैसी पंक्तीया दिल के दर्द को बडी सटीक तरिकेसे बया करती है ! होली मे पीचकारी से निकला रंग ऐसा कहर डालता है जैसे गोली चला दी हो किसीने, ऐसी पंक्तियोपे दाद देना भी दुभर और ना देना भी !
लेकिन घर का ये हाल बेटे के जाने भरसे हुआ है ? या बात कुछ और है ! चलिये अंतिम अंतरा सुनते है
पहले जब तू खत लिखता था
काग़ज़ में चेहरा दिखता था
बूँद हुआ यह मेल भी अब तो,
ख़तम हुआ यह खेल भी अब तो
डोली में जब बैठी बहना,
रास्ता देख रहे थे नैना
मैं तो बाप हूँ मेरा क्या है,
तेरी माँ का हाल बुरा है
तेरी बीवी करती है सेवा,
सूरत से लगती है बेवा
तूने पैसा बहुत कमाया,
इस पैसे ने देश छुड़ाया
पंछी पिंजरा तोड़ के आजा,
देश पराया छोड़ के आजा
आजा उम्र बहुत है छोटी,
अपने घर में भी हैं रोटी,
चिट्ठी आई है
पहले जब तू खत लिखता था, काग़ज़ में चेहरा दिखता था ! खत मे चेहरा दिखता है ? दिखता है जनाब , आवाज से दिलका हाल बया होता है और लब्जोमे चेहरा दिखता है , बस नजर चाहिये ! लेकिन बाद मे ये खत कम होते गये , बेटा ना बहन की शादी नाही आया , पत्नी को लेने नही आया , मां को देखने नही आया ! क्यू भई , क्या हुआ परदेस मे, के अपने बेगाने हो गये ? "पंछी पिंजरा तोड़ के आजा" ये पंक्ती समस्या की तरफ इशारा करती है , समस्या है पैसे क्या मोह , इस पैसे के चक्कर मे आदमी कैदी बन जाता है , घर की रोटी काफी होती है लेकिन रास नही आती !
क्यो चाहिये आदमी को पैसा ? क्या है इसमे ऐसा ? माना काफी सारे चीजे खरिदी जा सकती पैसे से ! लेकिन क्या जिंदगी से बडा है पैसा , अपनोके प्यार से बडा है पैसा , जिंदगी को जिये बिना पैसे के पिछे भागना क्या वाकई मे समजदारी है ? पता नही साहब , अपना अपना किस्सा है !
अंतमे एक बात जनहित मे जारी कर पुछ्ता हुं ,क्या हालही मे आपको को ऐसा को खत तो नही आया ? अरे हा, आजकल खत या चिठ्ठी कोई लिखता है भला ! लेकिन कही ऐसा तो नही के एकाद फोन , एस एम एस , व्हाटसं अप , इमेल के रूप मे आपके घर से कोई चिठ्ठी आई हो ? देख लीजीयेगा !
रणधीर पटवर्धन